School bus accident in Kanina very sad

Editorial:कनीना में स्कूल बस का हादसा बेहद दुखद, सरकार उठाए कदम

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School bus accident in Kanina very sad

School bus accident in Kanina is very sad, government should take steps: हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के कनीना में स्कूल बस के हादसे में 6 मासूमों की मौत बेहद दुखद है। यह हादसा तब हुआ जब चालक से बस अनियंत्रित हो गई और वह पेड़ से जा टकराई, लेकिन चालक से बस अनियंत्रित क्यों हो गई, यह अपने आप में सनसनीखेज बात है। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि चालक ने शराब पी हुई थी और इससे बड़ी चूक यह कि ईद की राष्ट्रीय छुट्टी के बावजूद उस दिन स्कूल खुला हुआ था और खुद प्रिंसिपल ने यह कहा था कि आज इसको शराब के नशे में भी गाड़ी चला लेने लो, कल इसको चाबी नहीं देंगे। यह सब कितना अचंभित करने वाला है कि कोताही पर कोताही बरती गई और उन 43 बच्चों से भरी बस को शराबी चालक के हाथों में सौंप दिया गया।

इस हादसे में जहां छह मासूमों की जान गई है, वहीं 37 अन्य बच्चे गंभीर रूप से घायल हुए हैं। इनमें से दो की हालत नाजुक बनी हुई है। इस प्रकरण पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, मुख्यमंत्री नायब सैनी समेत तमाम नेताओं ने दुख जताया है। हालांकि इन संवेदनाओं से उन परिवारों का दुख दूर नहीं किया जा सकता जिन्होंने हादसे में अपने मासूमों को खो दिया है। उन बच्चों का आखिर क्या दोष था। वे तो इतने आज्ञाकारी थे कि छुट्टी के दिन भी तैयार होकर स्कूल पहुंच रहे थे। क्या हरियाणा सरकार उस स्कूल संचालक से यह पूछेगी कि आखिर छुट्टी के दिन भी उसे स्कूल लगाने की क्या जरूरत पड़ गई थी। इसके अलावा राज्य में निजी स्कूलों की स्थिति क्या है?

दरअसल, इस प्रकार के हादसे जब-तब घटते रहते हैं। होता यह है कि हादसे के बाद सरकार एवं प्रशासन की ओर से तमाम ऐसे स्कूलों पर कार्रवाई शुरू हो जाती है। जवाब तलब होती है, नई गाइडलाइन जारी की जाती हैं, कार्रवाई होती है। फिर कुछ समय बात स्थिति सामान्य हो जाती है और सब कुछ पिछले ढर्रे पर लौट आता है। देशभर में आज निजी स्कूल एक बहुत बड़ा व्यवसाय बन चुके हैं। इन स्कूलों में सरकारी स्कूलों की तुलना में 90 प्रतिशत तक बच्चे पढ़ते हैं। इन स्कूलों में सुविधाएं और अच्छी पढ़ाई के नाम पर बच्चों को जिस हालात से गुजरना पड़ता है, वह चिंताजनक है। इसके अलावा अभिभावकों का जो शोषण होता है, वह उनकी परेशानी को और बढ़ा देता है।

हरियाणा में भी निजी स्कूलों की स्थिति ऐसी ही है। बेशक, बड़े नाम बन चुके स्कूलों में कुछ कायदे-कानून माने जाएं, लेकिन गली-मुहल्ले और गांव-देहात आदि में चल रहे निजी स्कूलों में कोई नियम देखने को नहीं मिलते। कनीना एक छोटा ग्रामीण कस्बा है। यहां पर जो स्कूल चल रहा था, उसके प्रिंसिपल ने ही उस चालक को गाड़ी की चाबी दिलवाई थी, जिसके नशे में होने की पहले ही पुष्टि हो रही थी। जिस बस से यह हादसा हुआ, वह साल 2018 में एक्सापयर हो चुकी है, लेकिन अब भी नियमों की अनदेखी करके सडक़ पर दौड़ रही थी। यह पूछा जाना चाहिए कि आखिर स्कूल प्रबंधन के पास जब पर्याप्त संसाधन नहीं हैं, तब भी स्कूल जैसी संस्था चलाने की उसे क्या जरूरत पड़ गई। दरअसल, शिक्षा को बिजनेस बना दिया गया है। ऐसी कोई बात नहीं है कि निजी क्षेत्र में स्कूल खोलना उचित नहीं है। लेकिन बात यह है कि तमाम नियमों को क्यों नहीं लागू करते हुए स्कूल का संचालन किया जाता।

इस मामले में यह भी सामने आ रहा है कि ग्रामीणों को इसकी जानकारी हो गई थी कि चालक नशे में है। उससे ग्रामीणों ने चाबी भी छीन ली थी, लेकिन फिर प्रिंसिपल ने ही वह चाबी नशेड़ी चालक को दिलवा दी। इस प्रकरण में स्थानीय परिवहन विभाग भी जिम्मेदार है, क्योंकि उसने कभी यह चेक ही नहीं किया कि स्कूलों बसों की स्थिति क्या है और उनके चालक किस हालत में बसों को चला रहे हैं। ऐसे हादसे के बाद इस तरह की बातें पुरजोर हो जाती हैं कि स्कूल बसों के चालकों के लिए गाइडलाइन होनी चाहिए।

बेशक, गुरुग्राम में एक विख्यात स्कूल के बच्चे की हत्या के बाद देशभर के स्कूलों में स्कूल बसों के नियमों को लागू किया गया। स्कूल बसों में एक चालक के अलावा स्कूल से ही किसी स्टाफ की तैनाती बस में करने के निर्देश भी हुए। ताकि बच्चों को चढ़ने-उतरने में उनकी मदद की जा सके। बड़े शहरों में हो सकता है, ये नियम अब भी लागू हों। लेकिन छोटे शहर और कस्बों में रहने वाले अभिभावकों के लिए समस्या है कि वे किस प्रकार चालकों की गतिविधियों को चेक करें। वे तो इस भरोसे पर ही बच्चों को स्कूल भेज देते हैं कि बस चालक एवं अन्य स्टाफ जिम्मेदार होगा। कनीना का यह मामला बेहद गंभीर है और इस संबंध में राज्य सरकार की ओर से प्रभावी कार्रवाई सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है। यह भी यकीनी बनाया जाना चाहिए कि भविष्य में आगे ऐसे हादसे न हों। मासूमों की मौत से उनके परिजनों के अलावा राज्य एवं देश का भी नुकसान हुआ है, क्योंकि बच्चे ही देश की वास्तविक सम्पत्ति हैं। 

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